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________________ 488 १८६३ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 4887 थिकायस्स देसे, धम्मस्थिकायस्स पएसा एवं अधम्मत्थि कायस्सवि अडासमए ॥१५॥ तिरिय लोय खेत्तलोयस्सणं भंते! एगम्मि आगासप्पदेसे किं जीवा एवं जहा अहे लोगखत्तलोगस्स तहेव, एवं उढलोय खेत्तलोगस्सवि, णवरं अद्धासमओ नत्थि ॥ अरूवी चउव्विहा लोगस्स जहा अहेलोग खेत्तलोगस्स एगम्मि आगासप्पएसे है ॥ १६ ॥ अलोगस्सणं भंते! एगम्मि आगासप्पएसे पुच्छा? गोयमा? णो जीवा, णो जीवदेसा तंचव जाव अणंतेहि अगुरुलहुय गुणेहिं संजुत्ते,सव्वागासस्स अणंतभादेश व प्रदेश ऐसे दो बोल पाते हैं. ऐसे ही अधर्मास्तिकाय के दो भेद और काल यों पांच अरूपी अजीब 24 अपोलोक के एक आकाश प्रदेश पर पाते हैं॥१५॥ अहो भगवन् ! तीर्छ लोक में एक आकाश प्रदेश में क्या जीव है, जीव देश है जीव प्रदेश है यावत् अजीव प्रदेश है ? अहो गौतम ! जैसे अधो लोक का कहा वैसे ही यहां कहना. ऐसे ही ऊर्ध्व लोक का जानना. परंतु उस में काल नहीं है इस से अरूपी अजीव । के चार भेद होते हैं ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! अलोक के एक आकाश प्रदेश पर क्या जीव है यावत् । ६० प्रदेश हैं ? अहो गौतम ! जीव नहीं है यावत् अजीव प्रदेश नहीं हैं. परंतु अनंत अगुरु लघुगुण संयुक्त सब आकाश के अनंतवे भाग कम है. यह क्षेत्र लोक का कथन हुवा ॥ १७ ॥ ट्रव्य से अधो लोक में | भावार्थ अग्यारवा शवक का दशवा उद्देशा 1880
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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