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एगम्मि आगास पदेसे कि, जीवा जीवदेसा जीवप्पदेसा; अजीवा अजीवदेसा अजी. . वप्पदेसा? गोयमा! णो जीवा जीवदेसावि जीवप्पएसावि, अजीवावि अजीवदेसावि अजीवप्पदेसावि; ॥ जे जीवदेसा ते णियमं एगिदियदेसा, अहवा एगिदियदेसाय १५६१ बेइंदियस्सदेसे, अहवा एगिदियस्स देसाय येइंदियाणयदेसा, एवं मझिल्ल विरहिओ
जाव अणिदिएसु जाव अहवा एगिदियदेसाय, अणिदियाणयदेसा ॥ जे जीवप्पएसा पर क्या जीव है जीव देश हैं या जीव प्रदेश है अथवा अजीव, अजीव देश व अजीव प्रदेश हैं? अहो गौतम! असंख्यात प्रदेशावग्राही जीव होने से एक आकाश प्रदेश पर जीव नहीं हैं परंतु जीव देश व १ जीव प्रदेश के दो बोल पाते हैं. और अजीव भी है. अजीव देशभी हैं व अजीव प्रदेश भी है. यधपि धर्मास्तिकायादिक अजीव द्रव्य एक प्रदेशापेक्षा पूर्ण नहीं है तथापि द्वयणुकादि द्रव्य तथा काल के
अनग्रहण से अजीव भी है अजीव देश हैं और अजीव प्रदेश हैं. अब जो जीव देश हैं वे निश्चय ही एकेAन्द्रिय जीव देश है क्यों कि एकेन्द्रिय सर्व लोक व्यापी है यह असंयोगी एक भांगा हुवा अथवा एकेन्द्रिय 8% के बहुत देश बेइन्द्रिय का एक देश, एकेन्द्रिय के बहुत देश बेइन्द्रिय के बहुत देश जिस प्रकार दशवेका
*शतक में तीन भांगे बतलाये इस में बहुत एकेन्द्रिय के बहुत देश व बेइन्द्रिय के बहुत- देश यह बीच का । 12 भांगा नहीं पाता है. शेष दो भांगे पाते हैं यावत यात एकेन्द्रिय के बहुत देश, बहुत अनेन्द्रिय के बहुत ..
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र -
अग्यारवा शतक का दशवा
भावार्थ