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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
गोयमा ! झलरिसंठिए पण्णत्ते ॥ ७ ॥ उट्ठलोग खत्तलोग पुच्छा ? गोयमा ! उद्रुमुइंगाकार संठिए पण्णत्ते ॥ ८ ॥ लोएणं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! सुप्पइट्टग संठिए लोए पण्णत्ते तंजहा-हेट्ठा विच्छिण्णे, मज्झ संखित्ते जहा सत्तमसए पढभोईसए जावं अंतंकरेंति ॥ ९ ॥ अलोएणं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते झुसिर. गोल संठिए पण्णत्ते ॥ १० ॥ अहेलोय खत्तलोएणं भंते ! किं जीवा जीव देसा
जीवप्पएसा, एवं जहा इंदा दिसा तहेव गिरवसेसं भाणियव्वं जाव अद्धासमए॥११॥ लोक का संस्थान झालर जैसा गोल है. ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ऊर्ध्व लोक का संस्थान कैसा है ? अहो । गौतम ! अर्ध मृदंगाकार संस्थान है. ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! ऊर्ध्व लोक का संस्थान कैसा है ? अहो । गौतम ! सुप्रतिष्टक संस्थान से लोक कहा है नीचे विस्तीर्ण मध्य में संकुचित ऊपर विस्तीर्ण वगैरह सातवा शतक में पहिले उद्देशे में कहा वैसा जानना. ॥ ९ ॥ अहो भगवन् ! अलोक का कैसा संस्थान है ? अहो गौतम ! झुसेर खाली गोलों में रही हुइ पोलार जैसा अलोक का आकार है. ॥ १० ॥ अहो. भगवन् ! क्या अधो लोक क्षेत्र में क्या जीव, जीव देश व जीव प्रदेश है ? अहो गौतम ! इस का सब अधिकार ईन्द्रा नामक दिशा जैसे अद्धा समय तक कहना ॥ १॥ अहो गौतम ! तीर्छ ।
अग्यारवा शतक का दशा उद्देशा 988+
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