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सूत्र
भावार्थ
ॐ०४ अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
खेत्तलोएणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज विहे पण्णत्ते, तंजहा- जंबूद्दी वेदीचे तिरियलोय खेत्तलोए जाब सयंभूरमण समुद्दे तिरिय लोय खेत्तलोए ॥ ४ ॥ उड्डलोय खेत्तलाएणं भंते ! कइविहे ? गोयमा ! पण्णरसविहे पण्णत्ते, तंजहा- सोहम्म कप्प उड्डलोय खेत्तलोए जाव अच्चुय कप्प उड्डलाय खेत्तलोए, गेविज विमाण उढलोय खत्तलोए, अणुत्तर विमाण उलोय खेत्तलए ईसिप्पन्भार पुढवी उढलोय खेत्तलो || ५ || अहे लोय खेत्तलोएणं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! तप्पागार संठिए पण्णत्ते ॥ ६ ॥ तिरिय लोय खेत्तलोएणं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ?
तम तमा पृथ्वी अधो लोक ||३|| अहो भगवन् ! तिच्र्च्छा लोक कितने प्रकारका कहा ? अहो गौतम ! तीच्छे लोक के असंख्यात भेद कहे हैं जम्बूद्रीप तिर्यक् लोक क्षेत्र यावत् स्वयंभूरमण समुद्र ॥ ४ ॥ अहो | भगवन् ! ऊर्ध लोक के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! ऊर्ध्व लोक के पनरह भेड़ कहे हैं. सौधर्म | देवलोक यावत् अच्युत देवलोक यह बारह हुवे १३ ग्रैवेयक १४ अनुत्तर विमान और १५ ईषत्प्रागभार} पृथ्वी ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! अधो लोक कौनसा आकार वाला है ! अहो गौतम ! अधो लोक त्रिपाइ आकार वाला है. ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! तीच्छ लोक का संस्थान कैसा है ? अहो गौतम ! तीच्छ
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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