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शब्दार्थ
1388 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ते ( भगवती)
प्ररूपा गोः गौतम च० चार प्रकार का लो० लोक ५० प्ररूपा तं० वह ज. जैसे द. द्रव्यलोक ख० । क्षेत्रलोक का० काल लोक भा० भावलोक ॥ १ ॥ खे० क्षेत्र लोक भं० भगवन का कितने प्रकार का गो० गौतम ति० तीन प्रकार का तं० वह ज० जैसे अ० अधोलोक ति० तिर्यक् लोक उ० ऊर्थ लोक ॥ २॥ सरल शब्दार्थ
लोए पण्णत्ते, तंजहा-दव्वलोए, खेत्तलोए, काल लोए, भावलोए, ॥१॥ खेत्तलोएणं , भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते तंजहा-अह लोय खेत्तलाए,
तिरियलोय खत्तलोए, उड्डलोय, खेत्तलोए, ॥ २ ॥ अहो लोय खेत्तलोएणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! सत्तविहे पण्णत्ते, तंजहा-रयणप्पभा पुढवी अहे।
लोय खेत्तलोए जाव अहे सत्तमा पुढवी अहे लोय खेत्तलोए ॥ ३ ॥ तिरिए लोय को वंदना नमस्कार कर श्री गौतम स्वामी पूछीने लगे कि अहो भगवन् ! कितने प्रकार का लांक कहा है ? अहो गौतम ! लोक चार प्रकार का कहा है. , द्रव्य लोक २ क्षेत्र लोक ३ काल लोक व ४ भाव लोक ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! क्षेत्र लोक के कितने भेद हैं ? अहो गौतम ! क्षेत्र लोक के 30 तीन भेद कहे हैं. १ अघो लोक २ तिर्यक् लोक व ३ ऊर्ध्व लोक. अहो भगवन् ! अधो लोक के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! अधो लोक के सात भेद कहे हैं. रत्तप्रभा पृथ्वी अयो लोक यावत् सातवी ।
865 अग्परवा शतक का दश उद्दशा
भावाथे