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________________ १५५६ शब्दार्थ है रा० राजगृह में जा० यावत् ए० ऐमा व बोले क० कितना प्रकार का भ० भगवन् लो• लोक ५०* णमंसइ णमंसइत्ता एवं वयासी जीवाणं भंते ! सिज्झमाणा कयरम्मि संवयणे सिझंति ? गोयमा ! वइरोसभणारायणे संघयणे सिझंति ॥ एवं जहेव उववाइ तहेव संघयणं संठाणं उच्चत्तं आउयंच परिवसणा ॥ एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियव्वा जाव अव्वाबाहं सोक्खं अणुहंती सासयं सिद्धा ॥ सेवं भंते भंते त्ति ॥ सियो सम्मत्तो ॥ एगारस यस्सय नवमो उंदसो सम्मत्तो ॥ ११ ॥ ९॥ रायगिहे जाव एवं वयासी-कइविहेणं भंते ! लोए पण्णत्ते ? गोयमा । चउव्विहे भावास्वामी को वंदना नमस्कार कर श्री गौतम स्वामी बोले कि अहो भगवन् ! सिद्ध होनेवाले जीवों को कितने संघयण कहे हैं ? अहो गौतम ! जीव वऋषभनाराच संघयण में सीझते हैं जैसे उववाइ में कहा वैने ही संघयन संठान, उच्चत्व, आयुष्य व परिवसन वगैरह कहना. सिद्ध भगवन्त जन्म जरा मृत्यु - व बंधन मुक्त हैं अव्याबाध शाश्वत सुख का अनुभव लेते हैं वगैरह सब कथन उववाइ जैसे कहना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह अग्यारवा शतक का नवधा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ११ ॥ १॥ है नववे उद्देशे के अंत में सिद्ध लोकान्त में रहते हैं ऐसा कथन किया. वह लोक किस संस्थान वाला है। उस का स्वरूप बताते हैं. राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी 12 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी: * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी घालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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