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मन्त्र
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 40880%
२ त्ता, समणं भगवं महावीरं तिक्खत्तो बंदइ णमंसइ णच्चासणे णाइदूरे जाव पंजलिउडे पज्जुवासइ ॥ २२ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे सिवस्स रायरिसिरस तीसेय महति महालियाए जाव आणाए आराहए भवइ ॥ २२ ॥ तएणं से सिवे रायरिसी समणस्स भगवओ महावीररस अंतियं धम्म सोच्चा णिसम्म जहा खंदओ जाव उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमइ २ त्ता, सुबहुं लोही लोह जाव किढिण संकाइगं च एगंते एडेइ २ त्ता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ २ त्ता समणं भगवं महावीर एवं जहेव उसभदत्तो तहेब पव्वइओ तहेव एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, तहेव सव्वं
जाव सव्व दुक्खप्पहीणे ॥ २३ ॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ और हस्त जोड कर पर्युपासना करता हुवा खडा रहा ॥ २२ ॥ फीर श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने उस महती परिषदा में शिवराजर्षि को आज्ञा का आराधक होता है वहां तक धर्म कथा सुनाइ ॥ २२ ॥ शिवराजर्षि भी श्रयण भगवंत महावीर स्वामी की पास धर्म श्रवण कर स्कंदक अनगार जैसे ईशान गया. वहां लोहे की कडाइ कावड वगैरह एकान्त में डालकर स्वयमेव पंच मुष्टि लोच किया और ऋषभ दत्त जैसे श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास प्रव्रज्या अंगीकार की. और अग्यारह अंग का अध्ययन करके यावत् सब दुःख से रहित हुवा ॥ २३ ॥ अहो पूज्य ! ऐमा कहकर श्री श्रमण भगवंत महावीर ।'
22 अग्यारवा शतक का नववा उद्देशा
भावार्थ
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