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________________ - • अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी जाव सहसंबवणे उज्जाणे अहपडिरूवंजाव विहरइ,तं महप्फलं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स जहा उववाइए जाव गहणयाए, तं गच्छामिणं समणं भगवं महावीरं वदामि जाव पज्जुवासामि, एयं णे इहभवेय परभवेय जाव भविस्सइ तिकटु, एवं संपेहेइ २ त्ता, जेणेव तावसावसहे तेणेव उवागच्छइ २ ता तावसावसहे अणुप्पविसइ २ त्ता सुबहुं लोही लोहकडाह जाब किढिण संकाइगंच गेण्हइ २ त्ता तावसाबसहाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता पडियविभंगे हत्थिणापुरं णयरं मझं मज्झेणं णिग्गच्छइ२त्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाने जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी सहसाम्रवन में आकाशगत चक्र से यथा प्रतिरूप अवग्रह याचकर विचर हैं इस से तथारूप अरित भारत के दर्शन का महा फल होता है वगैरह सब अधिकार उववाइ जैसे, कहना यावत् उन की पास से ग्रहण करने का तो कहना ही क्या. इस से श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास जाऊं और उन को वंदना नमस्कार यावत् पर्युपासना करूं इस भव व पर भव म यह ऐसा विचार करके तापस के आवास में गया और वहां से लोहे की कडाइ, कुडच्छी व कावड वगै लेकर हस्तिनापुर की बीच में होता हुवा सहस्राम्रवन उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर स्वामीकी पास गया *प्रकाशक-राजाबहादूर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाममादजी* भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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