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सूत्र
भावार्थ
अंतिए एमट्ठे सोच्चाणिसम्म हट्टतुट्ठा ॥ तएणं समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता जामेवदिसि पाउन्भूया तामेवादसिं पडिगया ॥ १९ ॥ तएणं हत्थि - णापुरे यरे सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एव माइक्खइ जात्र परूवेइ जणं देवाणुप्पिया ! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जात्र परूचेइ अत्थिणं देवापिया ! ममं अतिसेसे णाण दंसणे जाव समुदाय, तं णो इणट्टे समट्ठे. समणे भगवं महावीरे एव माइक्खड़ जाव परूवेइ एवं खलु एयस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेणं धर्मोपदेश सुनने को आई थी वह महावीर स्वामी की पास से ऐसा अर्थ सुनकर हृष्ठ तुष्ट यावत् आनंदित हुइ और महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर वह जहां से आयी थी वहां पीछी गई ॥ १९ ॥ फीर | हस्तिापुर नगर के श्रृंगारक का आकारवाले यावत् बहु रस्ते मीले वैसे स्थान में बहुत लोकों परस्पर ऐसा वार्तालाप करने लगे कि जो शिवराजा कहता है कि मुझे संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हुवा है इस से मैं जान सकता {हूं कि सात द्वीप व सात समुद्र हैं आगे कुच्छ भी नहीं है ऐसा जो उन का कथन है यह योग्य नहीं है। क्यों कि श्रमण भगवंत महावीर स्वामी ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपते हैं शिवराजर्षि को बेले २ पारणा करते हुवे विभंग अज्ञान प्राप्त हुवा है जिस से उसने सात द्वीप व सात समुद्र देखे हैं और इससे हस्तिनापुर नगर में आकर ऐसा कहा कि सात द्वीप व सात समुद्र हैं आगे कुच्छ भी नहीं है और उस की पास से
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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