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शब्दार्थ) 4 नि. नरका वास स० शन सहस्र में ए. एकेक निम्नरका वास में स० समयाधिक ज० जघन्य ठि० स्थिति।
में व० वर्तते ने नारकी किं. क्या को० क्रोधयुक्त मा० मानयुक्त मा० मायायुक्त लो• लोभयुक्त गो.
इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावात सयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि समयाहियाए जहण्णट्टिईए वट्टमाणा नेरइया कि कोहोवउत्ता, माणावउत्ता, मायोवउत्ता, लोभोवउत्ता ? गोयमा ! कोहोवउत्तेय, माणोवउत्तेय, मायो
वउत्तेय,लोभोवउत्तेय । कोहोवउत्ताय, माणोवउत्ताय, मायोवउत्ताय,लोभोवउत्ताय॥अहवा भावाथ की जघन्य स्थितिवाले नारकी क्या क्रोधवाले ज्यादा है ?मानवालेज्यादे हैं मायावाले ज्यादा है! या लोभवाले
ज्यादा है ? अहो गौतम : एक समय से अधिक समय की व संख्यात समय से अधिक समय की जघन्य स्थिति वाले नारकी होवे और नभी होवे इसलिये इस में अस्ती भांगे होते हैं. उस में असंयोगी आठ भांगे १ क्रोध का एक २ मान का एक ३ माया का एक ४ लोभ का एक ५ क्रोध का बहुत ६ मान
बहुत ७ माया का बहुत व ८ लोभ का बहुत. द्वि संयोगी भांगे २४.१. क्रोधवंत एक मानवंत : २ क्रोधवंत एक मानवेत बहुत ३ क्रोधवंत बहुत मानवंत एक ४ क्रोधवंत बहुत मानवंत
त ५ क्रोधवंत एक मायावंत एक ६ क्रोधवंत एक मायावंत बहुत ७ क्रोधवंत बहुत मायावंत एक ८ क्रोध 12वंत बहुत मायावंत बहुत?क्रोधवंतएक लोभवंतएक? ०क्रोधवंत एक लोभवंत बहुत ११क्रोधवंत बहुत लोभवंत ।
अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी !
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी पालाप्रसादजी *
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