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*हो. होये ए० ऐसे स० सत्तावीस भ० भांगा ने आनन॥६॥ ० इस र० रत्नप्रभा पु पृथ्वी में ती०तीस 2. अहवा कोहोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोवउत्ता, लोभोवउत्ते. अहवा कोहोव- उत्ता माणावउत्ता, मायोवउत्ता, लोभोवउत्ता, एवं सत्तावीसं भंगा नेयव्वा ॥ ५॥ मायावंत एक ११ क्रोधवंत बहुत मानांत बहुतं व मायावंत बहुन. १२ क्रोधवंत बहुत मानवेत एक व लोभवंत एक १३ क्रोधवंत बहुत मानवंत एक व लोभवंत बहत १४ क्रोधांत बहुत मानवंत बहुत व लोभ वंत एक १५ क्रोधवंत बहुत मानवंत बहुत व लोभवंत बहुत १६ क्रोधवंत बहुत मायावंत एक व लोभवंत में एक १७ क्रोधवंत बहुन मायावत एक व लोभवंत बहुत १८ क्रोधवंत बहुत मायावंत बहुत व लोमवंत एक १९ क्रोधवंत बहुत मायावंत बहुत व लोभवंत बहुत २० क्रोधवंत बहुत मानवंत एक, मायावंत एक व लोभवंत एक २१ क्रोधवंत बहुत मानवंत एक मायावंत एक व लोभवंत बहुत २२ क्रोधांत बहुत मानवंत . एक मायावंत बहुत व लोभवंत एक २३ क्रोधवंत बहत मानवंत बहत मायावंत एक व लोभवत
एक २४ क्रोधवंत बहुत मानवंत बहुत मायावंत एक व लोभवंत एक २५ क्रोधवंत बहुत In मानवंत बहुत मायावंत एक व लोभवन बहुत २६ क्रोधवंत बढ़त मानवंत बहुत मायावंत बहुत ।।
व लोभवंत एक २७ क्रोधवंत बहुत, मारवंत बहुत मायावंत बहुत व लोभवंत बहुत ये सब मीलकर 15२७ मांगे जघन्य स्थिति वाले नारकी में होते हैं. ॥५॥ अहो भगवन ! एक समय से अधिक समय है।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (
41804 पहिला शतक का पांचवा उद्देशा 8-4