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20 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
नारकी किं• क्या को• ऋधयुक्त मा० मानयुक्त मा० मायायुक्त लो० लोभयुक्त स० सर्व ता. तैसा
माणोवउत्तय मायोवउत्ता । कोहोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोवउत्तेय । कोहोव रत्ता, मागोवउत्ता, मायोवउत्ता॥ एवं कोहेणंमाणेण लोभेणं चत्तारिभंगा ॥ अहवा कोहोवउत्ता, माणोवउत्ते मायोवउत्ते. लोभोवउत्ते. । अहवा कोहोवउत्ता, माणोवउत्ते,
मायोवउत्ते लोभोवउत्ता। अहवा कोहोवउत्ता, माणोवउत्ते, मायोवउत्ता, लोभोवउत्ते. ____ अहवा कोहोवउत्ता माणोवउत्ते मायोवउत्ता लोभोवउत्ता । अहवा कोहोवउत्ता, माणो __ वउत्ता,मायोवउत्ते,लोभोवउत्ते. अहवाकोहोवउत्ता.माणोवउत्तामायोवउत्ते,लोभोवउत्ता इसमें अस्ती भांगे होते हैं. एकेन्टिय में चारों कपायवाले बहत हैं इस से इन में भांगा नहीं होता है. x भांगे के भेद कहते हैं १ क्रोधवाले बहुत २ क्रोधके बहुत मान के एक ३ क्रोध के बहुत मान के बहुत १४ क्रोध के बहुत माया के एक ५ क्रोध के बहुत माया के बहुत ६ क्रोध के बहुत लोभ के एक ७ क्रोध क बहुत लोभ के बहुत ( असंयोगी एक व द्वीतंयोगी ६ मील ७ हुवे) ८ क्रोधवंत बहुत मानवंत एक मायावत एक ९ क्रोधयंत बहुत मानवंत एक व मायावंत बहुत १० क्रोधवंत बहुत मानवंत बहुन व
+ जहां विरह है वहां असाभांगे और जहां विरह नहीं है वहां सत्ताइस भांगे होते हैं. यह विरह उत्पाद की अपेक्षा से नहीं ग्रहण किया है क्यों की वहांपर चौविस मुहूर्त का उत्पाद विरह कहा है और १ भांगे भी सत्तावीस ही कहे हैं
* मकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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