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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
- पंच विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
वास स० शत सहस्र में ए० एकेक नि० नरका वास में ज जघन्य ठि० स्थिति वाले व वर्तते नं० सयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि जहण्णियाए ठिईए वहमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोवउत्ता, लोभोवउत्ता ? गोयमा : सव्वेवि ताव होज्ज. कोहो उत्ता, अहवा कोहो उत्ता मांणोत्रउत्तेय | अहवा कोहोरउत्ताय, माणोवउत्ताय । अहवा कोहोत्रउत्ताय मायोवउत्तेय, / अहवा कोहोवउत्ताय मायोवउत्ताय । अहवा कोहो उत्ताय लोभोवउत्तेय, । अहवा कोहो उत्ताय, लोभोवउत्ताय । अहवा कोहोबउत्ताय माणोवउत्तेय, मायोवउत्तेयः । कोहो उत्ताय,
{ प्रकार की है. ॥ ४ ॥ अत्र इन स्थिति स्थान में क्रोधादि विषय का विभाग कर बताते हैं. अहो भगवन् ( रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासमें से प्रत्येक नरकावास में जघन्य स्थितिवाले नारकीरहे हैं। {उनमें से क्या क्रोधवाले ज्यादा हैं, ? मानवाले ज्यादा हैं ? मायावाले ज्यादा हैं ? अथवा लोभवाले ज्यादा? हैं ? अहो गौतम ! प्रत्येक नरक में जघन्य स्थिति वाले नारकी सदैव रहते हैं उस में क्रोध युक्त विशेष रहते हैं. इम • उन के २७ भांगे किये हैं. और एकादि से संख्यात समयाधिक जघन्य स्थितिवाले नारकी हैं वे क्वचित हैं और क्वचित नहीं भी हैं. इसलिये उसमें क्रोध सहित एक भी होवे अनेकभी होवे इससे
० पहिला शतकका पांचवा उद्देशा
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