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________________ शब्दार्थ सूत्र भावार्थ तीस २० नरकावास स० शन सहस्र में ए० एकेक नि० नरकावास में ने० नारकी क० कितने ठि० स्थिति स्थान गो० गौतम अ० असंख्यात ठि० स्थिति स्थान प० प्ररूपे सं० वह ज० जघन्य ठि० स्थिति स० सप्रयाधिक ज० जघन्य स्थितेि दु० दोसमयाधिक जा० यावत् अ० असंख्यात समयाधिक ज० जघ{न्य स्थिति त० उसयोग्य उ० उत्कृष्ट ठि० स्थिति ॥४॥ ३० इस र रत्नमना पृथ्वी में ती० तीन निव्नरका तीसाए निरयावास सयसहस्से एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ठिइट्ठाणा प० ? गोपमा ! असंखेला ठिइट्ठाणा प० तं० जहाणिया ठिई समयाहिया, जाणिया ठिई दुसमयाहिया, जात्र असंखेज्ज समयाहिया जहण्णिया ठिई. तप्पाउकोसिया ठिई ॥ ४ ॥ इमसेनं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास स्थिति होती है. उस में असंख्यात समय होते हैं इसलिये असंख्यात स्थिति स्थान होवे. वैसेही प्रत्येक नरकावास की अपेक्षासे भी असंख्याते स्थिति स्थान होवे. जैसे रत्नप्रभा के पहिले पाथडे में जघन्य दश ( हजार वर्ष उत्कृष्ट १० हजार वर्ष की स्थिति है वह एक स्थिनि स्थान वह भी प्रत्येक नरक में भिन्न है. उस से एक समय अधिक सो दूसरा जघन्य स्थिति स्थान वह भी अनेक प्रकार का है. ऐसेही असंख्यात समय अधिक जघन्य स्थिति स्थान वह भी अनेक प्रकार का है. स्थिति स्थानक प्रत्येक नरक व प्रत्येक पाथडे में भिन्न है. ऐसेडी विवक्षित नरकास को योग्य उत्कृष्ट स्थिति स्थानक भी अनेक 408 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी # १२४
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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