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________________ * gets पंचमांगविवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र णाणदंसणे समुप्पण्णे जाव तेणपरं वोच्छिण्णा दीवाय समुदाय ॥ से कहमेयं मन्ने एवं ॥ १६ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे परिसा जाव पडिगया ॥ १७ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जहा बिइयसए नियंठद्देसए जाब अडमाणे बहुजणसदं णिसामेइ, बहुजणे अण्णमण्णस्स एव माइक्खइ जाव एवं परूवेइ, एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव परूवेइ अत्थिणं देवाणुप्पिया! तंचेव जाव वोच्छिण्णा दीवाय समुदाय ॥ से कहमेयं मण्ण) एवं ? ॥ तएणं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमटुं सोचा णिसम्म इस से आगे द्वीप समुद्र नहीं है तो यह किस नरड है ॥ १६ ॥ उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा वंदना करने को आई यावत् धर्मोपदेश सुनकर पीछी गइ ॥ १७ ॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत महावीर का ज्येष्ट शिष्य जैसे द्वितीय शतक में कहा वैसे भिक्षा के लिये फीरते हुवे बहुत मनुष्यों की पास से ऐसा सुना की बहुन मनुष्य परस्पर ऐसा कहते हैं कि शिवराजर्षि कहते हैं कि मुझे उत्कृष्ट ज्ञान दर्शन उत्पन्न हुआ है इस से में सात द्वीप व सात समुद्र है ऐसा कहता हूं लो यह किस तरह हैं ऐसा बहुत मनुष्यों की पास से भुनकर दूसरे शतक में निग्रंथ अग्यारवा शतकका नववा उद्देशा भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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