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शब्दार्थ द्वीप स. सात समुद्र ते उससिवा वो० विच्छेदगये दी द्वीप स० समुद्र ए. ऐसा सं० विचारकर आ० ।
आतापन भूमिसे प. उसरकर वा० वल्कल व० वस्त्र नि० पहीने हुवे जे. जहां स० अपना उ० आश्रम ते. तहां उ० आकर स बहुत लो० लोहके पात्र क० कडाइ क कड़छी जा: यावत् भं. भांडे कि० कावड गे० ग्रहणकर जे० जहां ह० हस्तिनापुर न० नगर जे. जहां ता० तापस का. आश्रम ते० तहां उ० आकर भं० भांडे नि निक्षेप क० करके ह• हस्तिनापुर ण. नगर सिं० सिंघाडग जा. यावत् प० रस्ते में व. बहुत मनुष्य को ए. ऐसा आ. कहे जा. यावत् प० प्ररूपे अ०है दे० देवानुप्रिय म०
एवं खलु अस्सि लोए सत्तद्दीवा सत्तसमुद्दा, तेणं परं वोच्छिण्णा दीवाय समुदाय एवं संपेहेइ २ त्ता, आयावण भूमीओ पच्चोरुहइ २ त्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छ३ २ त्ता सुबहुं लोहो लोहकडाहकडुच्छुयं जाव भंडगं किदिण संकाइयं गेण्हइ २ त्ता जगेव हथिणापुरे णयरे जेणेव तावसावसहे तेणेव उवागच्छइ
२ त्ता, भंडगणिक्खेवं करेइ करेइत्ता, हत्थिणापुरे णयरे सिंघाडगतिग जाव पहेमु ०७ अतिशय ज्ञान दर्शन उत्पन्न हुवा है इस से मैं जान सकता हूं कि इस लोक में सात द्वीप व सात समुद्र
हैं. आगे कोई द्वीप व समुद्र नहीं है. ऐसा विचार करके आतपना भूमि में से वल्कल के वस्त्र पहिन कर स्वत:की पर्णकूटी में आया. वहां से लोहे की कडाइ कुडछी यावत् भंडोपकरण व कावड वगैरह लेकर का
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
अग्यारवा शतकका नववा उद्देशा 988
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