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19 में व० वरुण म ० महाराजा प० मोक्षमार्ग में प० प्रवृत से० शेष तं० तैसे जा. यावत् आ० आहारकरे १०॥ १३ ॥ त० तब से वह सि. शिवराजर्षि च० चौथा छ. छठक्षमण उ० अंगीकारकर वि. विचरे त०
तब से वह सि० शिवराजर्षि च० चौथा छ. छठक्षमण णा विशेष उ० उत्तर दिदिशाको पो० प्रवृत होवे उ• उत्तर दिशा के वे० वैश्रमण म० महाराज प. मोक्षमार्ग में प० प्रवृत के अ० रक्षक से० शेष जा. यावत् त• पीछे था. आप आ० आहारकरे ॥ १४ ॥ त० तब उ० उस मि० शिवराजर्षि को छ० दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तंचे जाव आहारमाहारेइ ॥ १३ ॥ तएणं से सिवे रायरिसी चउत्थ छ? क्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरइ। तएणं से सिवे रायरिसी चउत्थ छ? क्खमण एवंचेव, णवरं उत्तरं दिसिं पोक्खेइ, उत्तराए दिसाए वेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खओ सेसं तंचेव जाव तओ पच्छा अप्पणा
आहारमाहारेइ ॥१४॥ तएणं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छटुं छट्टेणं अणिक्खित्तेणं विधि जानना. इस में पश्चिम दिशा व पश्चिम दिशा का वरुण महाराजा जानना ॥ १३ ॥ फीर चौथा बेला किया उस में भी पारणा पूर्वोक्त विधि से किया परंतु उत्तर दिशा व उत्तर दिशा के अधिपति वैश्रमण महाराजा ग्रहण करना ॥१४॥ इस तरह शिव राजर्षि को निरंतर छठ छठ का तप करते यावत् आ
पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती ) सूत्र
अग्यारवा शतकका नववा उद्देशा 988
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