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शब्दार्थ
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48 अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी gr
विचरे ॥ ११ ॥ त० तब से वह सि• शिव रा० राजर्षि दो० दूमरी वक्त छ. छठक्षमण में आ०.
न भ० भमिसे प० उतरकर वा. वल्कल वस्त्र ए. ऐसेज जैसे प० प्रथम पा० पारणा में ण विशेष दा० दक्षिण दिशा में पो० प्रवृत होवे दा• दक्षिण दिशा में ज० यम म० महाराजा १० प्रस्तार से० शेष तं० तैसे जा० यावत् आ० आहारकरे ॥ १२ ॥ त० तब सि० शिवराजर्षि त० तीसरा छ. छठक्षमण उ० अंगीकारकर वि० विचरे ण. विशेष प० पश्चिम दिशा में पो० प्रवृत्त होवे प० पश्चिम दिशा पजित्ताणं विहरइ ॥ ११ ॥ तएणं से सिवे रायरिसी दोच्चं छटुक्खमण पारणगांस आयावण भूमीओ पच्चोरुहइ २ त्ता वागल एवं जहा पढमपारणगं, णवरं पाहिणदिसिं पोक्खेइ २ ता दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणं सेसं तंचेव जाव आहारमाहारेइ ॥ १२ ॥ तएणं से सिवे रायरिसी तर्च छट्ठक्खमणं उबसंपजित्ताणं विहरइ ॥ तएणं से सिवे सेसं तंचेव, णवरं पञ्चत्थिमं दिसि पोक्खेइ पञ्चत्थिमाए दूपरा वेला कर दिया ॥ ११ ॥ फोर दूसरे बेले के पारणे में आतापना भूमि में से आकर जिस विधि से पहिला बेला का पारणा किया उसी विधि से दूसरे बेले का पारणा किया, परंतु इस में दक्षिण दिशा लेना और दक्षिण दिशा का यम महाराजा ग्रहण करना ॥ १२ ॥ फीर तीसरा बेला किया उस में पूर्वोक्त
* प्रकाशक-राजाजहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ