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शब्दार्थ डाले अ० अग्नि उ० उज्वलीतकर अ० अग्नि की दा० दक्षिण बाजु स० सात अंग स० स्थापे तं• वह } 0 |
ज० जैसे स० सकथा व. वल्कल ठा० स्थान से० शय्या भांड क. कमण्डल द. दन्तदारु त० तथा | V अ० आपको म० मध से घ० घत से तं तंदल से अ० अग्नि कोह हवनकर च. चोखा सा.
कर ब० बली व० अग्निको क० देकर अ० अतिथि पू० पूजा क. करके त० पीछे आ० आप आ०१ आहारकरे त• तब से वह सि० शिवराजर्षि दो० दुसरी वक्त छ० छठक्षमण उ० अंगीकारकर वि.
२त्ता समिहाय कट्टाई पक्खिवेइ २ त्ता अग्गि उज्जालेइ २ त्ता अग्गिस्स दाहिण १ पासे सत्तंगाई समादहे तंजहा सकहं वक्कलं ठाणं सेजाभंडं कमंडलु, दंडदारूं तहप्पाणं आहेताई समादहे ॥ १ ॥ महुणाय घएणय, तंदुलेहिय अग्गि हुणइ; हुणइ २ । त्ता चरुं साहेइ साहेइत्ता, बलिं वइसदेवं करेइ २ त्ता, अतिहिपूयं करेइ २ त्ता,
तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ तएणं से सिवे रायरिसी दोच्चं छट्टक्खमणं उवसं भावाथ यूं किया और अग्नि में काष्ट डालकर प्रज्वलित की. अग्नि की दक्षिण की तरफ सात रकम की स्था
हैपना की १ कथा [गोदडी] २ वल्कल के वस्त्र ३ पात्र ४ शैय्या ५ पानी का पात्र ६ काष्टमय दंड ७७ आप स्वयं फीर मधु, घृत व तंदुल अग्नि में डाले क्षीरादिक बलि के लिये बनाये. अग्नि का पूजन,
किया, आये हुने अतिथी माहूणे की पूजा करके फीर शिवराजर्षिने पारणा किया. पारणा करके पुनः।
<Pract-- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र
अग्यारवा शतक का नवा उद्देशा Nagi
भावार्थ