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शब्दार्थ + त० तब से वह वि० शिवराजा अ० एकदा सो० शुभ ति० तिथि क० करन दि० दिवस {ण० नक्षत्र मु० मुहूर्त में वि० विपुल अ० असन पा० पान खा० खादिम सा० स्वादिम उ० बनवाकर मि० मित्र णा० ज्ञाति णि० संबंधी जा० यावत् प० परिवार को रा० राजाओं को ख० क्षत्रियों को आ० आमंत्रणकर त० पीछे पहा० स्नान किया जा० यावत् भो० भोजन मं० मंडप में सु० शुभासनपे व० बैठे हुवे तं० उन मि० मित्र णा० ज्ञाति णि० संबंधी जा० यावत् प० परिजन रा० राजाओं ख० क्षत्रियों स० साथ वि० विपुल अ० असन पा० पान खा० खादिम सा० स्वादिम ए० ऐसे ज० जैसे ता० तामली सणक्खत्त मुहुत्तंसि विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उक्क्खडावैति उवक्खडावेंतित्ता मित्तणाइणियग जात्र परियणं रायाणो खत्तिएय आमंतेइ २ त्ता तओ पच्छा हाए जाव सरीरे भोअणमंडवंसि सुहासण वरगए तं मित्तणाइ णियग सयण जात्र परिजणेणं राईहिं खत्तिएहिय सार्द्धं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं एवं जहा ताली जा सकाइ सम्माणेइ २ ता तं मित्तणाइ णियग जाव परिजणं रायाणो व स्वादिम बनवाया विपुल अशनादि बनवाकर मित्रज्ञाति स्वजन यावत् परिजन, राजा व क्षत्रियों को आमंत्रण देकर के बोलाये. फीर स्नान किया यात्रत् वस्त्रालंकार से विभूषित बनकर भोजनगृह के मंडप में ॐ सुभासन पर बैठे. वहां मित्र ज्ञाति स्वजन यावत् परिजन से राजा व क्षत्रियों की साथ बहुत अशन,
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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