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शब्दार्थ
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पंच गङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र Pat
कुमार को ज. जय वि. विजय में व० वधावे ता. उन ई० इष्ट के. कांत पि. प्रिय ए० ऐसे ज० जैसे, उ० उक्वाइ में कू० कूणिक का जा० यावत् १० उत्कृष्ट आयुष्य पा० पालो इ० इष्ट जन सं० परवरे हुवे ह० हस्तिनापुर न० नगर अ० अन्य १० बहुत गा० ग्राम आ० आगार जा. यावत् वि. विचरो त्ति ऐसा करके ज० जय जय स० शब्द ५० प्रयंजे ॥ ८ ॥ त० तब से वह सि. शिवभद्र कुमार रा० राजा जा० हुबा म० महा हि हिमवन्त व० वर्णन युक्त जा० यावत् वि० विचरता है ॥ ९ ॥
करयल जाव कटु सिवभई कुमारं जएणं विजएणं वडावेति २ त्ता, ताहिं इट्टाहिं कंताहिं पियाहिं एवं जहा उववाइए कुणियरस जाव परमाउयं पालयाहिं इ8 जण संपरिवुडे,हत्थिणापुरस्स णयरस्स अण्णेसिंच बहूणं मामागर जाव विहराहि त्तिकटु जयजयसदं पउंजंति ॥ ८ ॥ तएणं से सिबभद्दे कमारे राया जाए महयाहिमवंत वण्णओ
जाव विहरइ ॥ ९ ॥ तएणं से सिवे राया अण्णयाकयाइं सोहणंसि तिहिकरण दिवयों जैसे उबवाइ सूत्र में कूणिक राजा का कथन है उस प्रकार ही यहां सब कहना. यावत् परम उत्कृष्ट पालना. इष्टजनों की साथ परवरे हुए हस्तीनापुर नगर का व अन्य अनेक ग्राम व नगरों का राज्य करते. ॐ हुवे यावत् विचरना ॥ ८ ॥ फीर वह शिवभद्र कुमार राजा यावत् महाहिमवंत पर्वत समान यावत् विचरने*
लगा ॥९॥ फीर शिव राजाने उत्तम तिथि, करण, दिन, नक्षत्र व मुहूर्त में विपुल अशन, पान, खादिम |
अग्यारवा शतक का नववा उद्दशा 48
भावार्थ