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शब्दार्थ 4 सी० सिंहासनपे पु० पूर्वाभिमूख से णि बैठाकर अ• आठ स. शत सो० सुवर्ण के क० कलश जा०:
यावत् अ० आठ सशत भो० मिट्टिके का कलश से स० सर्वऋद्धि से जा. यावत् र० शब्द से म० बडा रा० राज्याभिषेक अ० सिंचनकर ५० पाम सु. सुकोमल सु० सुराम गंध वाला का• वस्त्रसे गा. गान ल० पूंछकर सः सरस गो० चंदनमे ज. जैसे ज• जमाली का अलंकार जा. यावत् क० कल्पवृक्ष जैसे अ० अलंकृत वि. विभूषित क० करके क० करतल जा. यावत् क० करके मि० शिवभद्र __सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहं णिसीयाति २ ता, अट्टसएण सोवाणियाणं कलसाणं
जाव अट्ठसएणं भोमेज्जाणं कलसाणं सन्धिड्डीए जाव रवेणं महया रायाभिसेएणं आभिसिंचंतिरत्ता, पम्हलसुकुमालाए सुरभिगंधकासाईएगायाइं लहेइ २त्ता, सरसेणं गोसीसणं जहेव
जमालिस्स अलंकारो जाव कप्परुक्खगंपिव अलंकियविभूसियं करेंति २ ता, भावार्थ
सब प्रकार की ऋद्धि से यावन् वादियो व बंदीजनों का विजय ध्वनि से बहुत बडा राज्याभिषेक से अभि सिंचन किया. अभिसिंचन करके पक्ष्मल [ पशम ] जैसे सुकोमल सुगंधित कषाय वाला बत्र से गात्रों को पूंछे फीर अच्छे गोशीर्ष चंदन से गात्रों को लेपन किया. जैसे जमाली का राज्याभिषेकका अधिकार है वैसे ही यहां कहना यावन् सब वस्त्रालंकार से अलंकृत कर कल्पवृक्ष समान सुशोभित किया. और सब हाथ जोडकर शिवभद्र कुमार को जय विजय शब्द से वधाये, बहुत इष्टकारी मियकारी शब्दों से संतुष्ट किया है
43 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी -
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखद
आयजी ज्वालाप्रसादजी