________________
शब्दार्थ
428 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
यावत् त उनकी आ० आज्ञा प० पीछीदेते हैं तो तब से वह सि शिव रा. राजा दो० दूसरी वक्त । को कौटुबिक पुरुष को स० बोलाकर एक ऐमा व बोले खि० शीघ्र दे० देवानुप्रिय सि० शिव भद्र कुमार का म० बडा वि० विपुल रा. राज्याभिषेक उ० करो त० तब ते० वे को कौटुम्बिक पुरुष त..*
१५३५ तैसे जा० यावत् उ० करते हैं ॥ ७ ॥ त तब से वह सि• शिव रा० राजा अ० अनेक ग० गण ना. नायक दं० दंडनायक जा. यावत् सं० सन्धिपाल स० साथ सं० घेरायाहुवा सि० शिवभद्र कुमार को
पच्चुप्पिणंति तएणं से सिवराया दोच्चंषि कोडंघिय पुरिसे सद्दावेइ २ त्ता, एवं क्यासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सिवभहस्स कुमारस्स महत्थं २ विउलं रायाभिसेयं में उवट्ठवेह तएणं ते कोडुंबिय पुरिमा तहेब जाव उवट्ठति ॥ ७ ॥ तएणं से सिवे.
राया अणेग गणनायग, दंडनायग, जाव संधिवाल सर्हि संपरिवुडे सिवभद्दकुमारं अंदर व बाहिर स्वच्छ करके शणगारो और ऐसी सब प्रकार की सामग्री करके मुझ मेरी आज्ञा पीस दो. फीर दुसरी वक्त कौटुम्बिक पुरुषों को वोलाकर कहा कि शिवभद्र कुमार केलिये बहुत द्रव्य का खर्चा , करके बडा राज्याभिषेक करो. ऐसा वचन सुनकर वे कौटुम्बिक पुरुषोंने आज्ञानुसार सब तैयारी करदी ॥ ७ ॥ तब अनेक गण नायक दंड नायक यावत् संधिपाल से परवरा हुवा शिवराजाने शिवभद्र कुमार को सिंहासनपर पूर्वाभिमुख से बैठाया और १०८ सुवर्ण यावत् १०८ मृत्तिका के कलश इत्यादि ।' |
अग्यारवा शतक का नवाबदशा 48