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________________ शब्दार्थ सूत्र भावार्थ 08 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी लेकर ए० इसरूप अ० अभिग्रह अ० ग्रहण करूंगा क० कल्पता है मे मुझे जा० जीवन पर्यंत छ० छठ छठ से अ० अंतर रहित दि० दिशा चक्र वाल त तप कर्म से उऊर्ध्व बाहु प० रखकर जा० यावत् वि० विचरने को ति० ऐसा करके सं० विचार करे || ६ || क० काल जा० यावत् ज० सूर्य सु० बहुत लो० लोहे के पात्र जा० यावत् ६० बनवाकर को कौटुम्बिक पु० पुरुष को स० बोलाकर ए० ऐसा व बोले (खि० शीघ्र दे० देवानुप्रिय ह० हस्तिनापुर ण० नगर को स० आभ्यंतर बा० बाह्य आ० सिंचकर जा जीवाए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालएणं तवोकम्मेणं उद्धुं बाहाओ पगि झिय २ जाव विहरित्तए तिकटु एवं संपेहेइ २ ता ॥ ६ ॥ कलं जाव जलंते बहुं लोहीलोह जाव घडावेत्ता कोडुबिय पुरिसे सदावेइ २त्ता एवं बयासी खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! हत्थणाउरं यरं सभितर बाहिरियं आसिय जाव तमाणत्तियं अंगीकार करना मुझे श्रेय है. और भी प्रवर्ज्या लिये पीछे ऐसा अभिग्रह करना कि मुझे जीवन पर्यंत छठ भक्त निरंतर तप करना श्रेय है और पारने के दिन पूर्वादि दिशाओं की पूजा करके पारना करना और जहां लग पारणा का काल प्राप्त नहोवे वहां लग आतापना के स्थान दोनों हाथ ऊंचा रखकर आतापना लेता हुआ विचरना || ६ || ऐसा विचार करते जब प्रातःकाल हुबा तब लोहे का तवा कुडच्छा वगैरह बनाकर कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाये और कहा कि अहो देवानुप्रिय ! तुम नगर को * प्रकाशक- राजा बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * १५३४
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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