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शब्दार्थकाले सं० शंख बजाने कू० नदी नटपे शंख बजाने वाले मि० मृगका मांस खानेवाले ह• हस्ति तापस:
ज. जल अ० अभिषेक से क० कठीन गात्र वाले अं० जलवासी वा० वायु वासी अं० जलभक्षी वा० वायुभक्षी से सेवालभक्षी मू. मूलाहारी प. पत्राहारी त० सचाहारी पु०१३
|१५३२ पुष्पाहारी फ० फलाहारी बी० बीजाहारी ५० समस्त कं० कंद मू० मूल त० त्वचा प० पत्र पं० पकेहुवे |
सेवालभक्खिणो, मूलाहारा, कंदाहारा, पत्ताहारा, तयाहारा, पुप्फाहारा, फलाहारा, बीयाहारांपडिसडिय कंदमूलतयपत्त पंडुत्त पुप्फफलाहारा उदंडगा रुक्खमूलिया मंडविया, बिलवासिणो, वकवासिणो दिसापोक्खिणो, आतावणेहि, पंचम्गितावेहि, इंगालसोल्लि दिशा में रहनेवाले १६ शंख बजाकर भोजन करनेवाले, १८ मृग का ही मांस खानेवाले १९ एक हस्ती मारकर बहुत दिन तक खानेवाले २० पानी के स्नान से शरीर को कठिन करनेवाले २१ पानी में सदैव रहनेवाले २२ वायु में सदैव रहनेवाले. २३ पानी की अंदर डूबकर सदैव रहनेवाले २४ पानी के प्रवाह . की साथ चलनेवाले (पाठांतर में वस्त्र के मकान सो तंबू आदि में रहनेवाले) २५ मात्र पानी के आधारसे रहनेवाले २६ वायु का भक्षण करनेवाले २७ पानी की सेवाल खाकर सदैव रहनेवाले २८ वनस्पति का मूल खाकर रहनेवाले २१. वनस्पति का कंद खाकर रहनेवाले ३० पत्र खाकर रहनेवाले ३१ वृक्ष की त्वचा खाकर रहनेवाले ३२ पुष्प खाकर रहनेवाले ३३ फल खाकर रहनेवाले ३४ वीज खा कर रहनेवाले
.41 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालापसादजी *
भावार्थ