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शब्दार्थ
पंचमांगविवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 2280
ग० ग्रहणकर जे. जो इ.. ये गं० गंगाकूल के पा० वानप्रस्थ ता० तापस भ होते हैं तं० वह ज० जैसे हो. अग्निहोत्री पो० वस्त्रधारी ज. जैसे उ. उववाद में का० भमिपे सोने वाले ज० यज्ञ करने वाले स० श्राद्ध करने वाले था कमण्डलधारी हुं० कुंडिक आश्रम वाले दं० फल भोगी उ० एक वक्त स्नान करने वाले सं० निमजन करने वाले णि स्नान करने वाले सं० मिट्टिका लेपकर स्नान करने वाले उ० नाभिके उपर खाज खनने वाले अन्नाभी के नीचे खाज खनने वाले दक्षिण तटप बैठने वाले उ उत्तर तटपे बैठने
होत्तिया, पोत्तिया,जहा उबवाइए कोत्तिया, जण्णई,सण्णई,थालई, हुंवउट्ठा दंतुक्कलिया,
उम्मज्जगा,समज्जगा,णिम्मजगा,संपक्खाला,उड्डकडूयगा अहोकंडूयगा दक्खिण कुलगा । उत्तरकूलगा सखधमगा कूलधमगा,मिगलुद्दया,हात्थतावसा, जलाभिसेय, कढिणगत्ता,
अंबुवासिणो, वाउवासिणो, जलवासिणे, वेलवासिणो, अंबुभक्खिणो, वाउभक्खिणो, पर रहने वाले तापसों में जाना मुझे श्रेय है. वे तापम कैसे हैं १ अग्निहोत्र करने वाले, २ वस्त्र रखने वाले १३ भूमि शयन करने वाले, ४ यज्ञ करने वाले, ५ श्रद्धावंत, ६ अपने उपकरण सदैव साथ रखने वाले कमंडलधारी ८ फलाहारी ९ एकवार पानी में प्रवेशकर तत्काल नीकलने वाले १० वारंवार पानी में प्रवेश
वश करनेवाले १२ नाभी के उपर के अंग में खुजाले नहीं १२३ नाभी के नीचे का भाग खजाले नहीं १४ गंगा के दक्षिण भाग में रहनेवाले १५ गंगा की उत्तर
4 अग्यारना शतकका नववा उद्देशा 18238
भावार्थ