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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 8980
नाडीक हों० होती है १०पलास में ति०तीन ले० लेश्या च०चार ले. लेश्या अ० अवशेष पं०पांचमें॥११॥८
ते. उस काल ते. उस समय में ह० हस्तिनापुर ण. नगर हो० था व० वर्णन युक्त ॥१॥ तक उस ह० हस्तिनापुर न. नगर की ब. बाहिर उ० उत्तर पु० पूर्व दि० दिशा में स. सहस्राम्रवन उ0120 उद्यान हो था स० सर्व उ० ऋतु के पु०पुष्प फ• फल स० समृद्धिवाला र० रम्य णं. नंदनवन स जैसा मु. सुख दायक सी० शीतल छा० छायावाला म• मनोरम स० स्वादिष्ट फल अ० कंटक रहित पा०
एगारस सयस्स अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ११ ॥ ८॥ + + तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिणापुरे णामं यरे होत्या वण्णओ, तस्सणं हत्थिणापुरस्स णयरस्स बहिया उत्तर पुरत्थिमे दिसीभागे एत्थणं सहस्संबवणे नाम उजाणे होत्था.
सब्बोउयपुप्फफल समिद्धे रम्मे गंदणवण सण्णिगासे सुहसीयलच्छाये मणोरमे सादुहुआ ॥ ११॥८॥
. . | आठवे उद्देशे तक में उत्पलादि वनस्पति का अधिकार कहा. इसे सर्वज्ञ जानते हैं अन्य नहीं जानते हैं 390 इससे शिव राजर्षि का अधिकार कहते हैं. उस काल उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था. उस हस्तिनापुर नगर की बाहिर ईशान कौन में सहस्राम्नबन नामक उद्यान था. वह उद्यान सब ऋतु के पुष्प, फलादि से समृद्धिवंत व चित्तको रमणीय था. नंदनवन समान सुखदायी व शीतल छाया वाला था
अग्यारवा शतकका नबवा उद्दशा 8800-600
भावार्थ