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________________ १५२६ शब्दार्थ है न नलीन भं० भगवन् ए. एक पत्र में कि० क्या ए. एक जीव अ० अनके जीव ए० ऐसे गि० निर्विशेष जा० यावत् अ० अनंत वक्त सा. शालुक में ध० धनुष्य पु. पृथक् हो. होवे ५० पलास में गा० गाऊ पु० पृथक् जो० योजन स० सहस्राधिक अ० अवशेष छ• छकी कुं० कुंभी नी• नाडीक में वा० वर्ष पु० पृथक ठि० स्थिति घोः जानना द० दशवर्ष स० सहस्र अ० अवशेष छ० छकी कुं॰ कुंभी ना० नलिएणं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे एवंचेव णिरवसेसं जाव अणंत खुत्तो ॥ (गाथा) सालुमि धणु पुहुत्तं होइ पलासेय गाउय पुहुत्तं ॥ जोअण सहस्समहियं अवसेसाणं तु छण्हपि ॥ १ ॥ कुंभिए नालीए वासपुहुत्तं ठिईओ बोधव्वा ॥ दसवास सहस्ताई, अवसेसाणं तु छण्हंवि ॥ २ ॥ कुंभिए नालियाए, होति पलासेय तिष्णिलेसाओ, चत्तारिउ लेस्साओ, अवसेसाणं तु पंचण्हं ॥ २ ॥ सेवं भंते भंते ति॥ ___ अहो भगवन् ! नलिनी के एक पत्र में क्या एक जीव है या अनेक जीव हैं ? अहो गौतम ! जैसेभावार्थ पहिले का कहा वैसे ही जानना. अब गाथा से विशेषता बतलाते हैं साल में प्रत्येक धनुष्य और पलास में 1 प्रत्येक गाउ और शेष छ की साधिक योजन सहस्र अवगाहना कही. कुंभी और नाली में प्रत्येक वर्ष की स्थिति और शेष की दश हजार वर्ष की स्थिति. कुंभि, नाली व पलास में तीन लेश्याओं शेष पांच में , *चार लेण्याओं कही. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य है यह अग्यारवा शतक आठवा उद्देशा समाप्त बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8 innnnnnnnnnnnnnnnnn *.प्रकाशकः राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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