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शब्दार्थ
११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी "
से शेष तं० तैसे ॥ ११ ॥ ३ ॥ x
कुं. कुंभी भं• भगवन् ए० एक पत्र में कि क्या ए. एक जीव अ. अनेक जीव ज. जैसे प. पलास उ० उद्देशा त० नैसे भा० कहना ण. विशेष ठि० स्थिति ज. जघन्य अं• अंत मुहूर्न उ. उत्कृष्ट
वर्ष पृथक् स० वह ए० ऐते भं० भगवन् ॥ ११॥ ४॥ ना० नोडीक भं० भगवन् ए. एक पत्र में कि० क्या ए. एक जीव अ० अनेक जीव ए. ऐसे कुं०
छब्बीसं भंगा, सेसं तंचेव॥ सेवं भंते २त्ति। एगारस सयस्सय तइओ उद्देसो॥११॥३॥ कुंभिएणं भंते ! एगपत्तए किं एग जीवे अणेग जीवे एवं जहा पलासुद्देसए तहा.. भाणियव्वे, णवरं ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं. उक्कोसेणं वासपुहुत्तं सेसं तंचेव ॥ सवं भंते २ त्ति ॥ एगारस सयस्सय चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ११ ॥४॥
नालिएणं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे, एवं कुंभिउद्देसग वत्तव्वया णिर शतक का तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुआ ॥ ११ ॥ ३ ॥ १ अहो भगवन् ! क्या कुंभिके एक में एक जीव उत्पन्न होता है या अनेक जीव उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! पलास जैसे कहना परंतु स्थिति जघन्य अंत मुहूर्त उत्कृष्ट प्रत्येक वर्ष. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह अग्यारवा शतक का चौथा उद्देशा समाप्त हुआ ॥ ११ ॥ ४॥ . * है अहो भगवन् ! क्या नाडी के एक पत्र में एक जीव है या अनेक जीव हैं ? अहो गौतम ! कुंभि ।।
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ