________________
शब्दार्थ
*
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र १११
५० पलास भं भगवन् ए० एक पत्र में कि० क्या ए० एक जीव ए. ऐसे उ० उत्पल उ० उद्देशा? ।। की व० वक्तव्यता अ. अवशेष भा० कहना ण. विशेष स० शरीर ओ० अवगाहना ज० जघन्य अ०१ अंगल का अ० असंख्यातवा भाग उ० उत्कृष्ट गा० गाऊ पु. पृथक दे. देव ए• इस में न० नहीं उ०११
११.१५२३ उपजते हैं ले० लेण्या में भ० भगवन् जी० जीव किं० क्या क० कृष्ण लेश्यी नी. नील लेश्यी का कापोत लेश्यी गो• गौतम क० कृष्ण लेश्यी नी० नील लेश्यी का० कापोत लेश्यी छ० छवीप्त ५० भांगा
पलासेणं भंते ! एगपत्तए किं एग जीवे, एवं उप्पल उद्देसग वत्तव्वया अपरिसेसा भाणियव्वा, णवरं सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं उक्कोसेणं गाउय पुहुत्तं, देवा एएसु न उववजति, लेसासु-तणं भंते ! जीवा किं कण्ह लेस्सा,
नील लेस्सा, काउलेस्सा ? गोयमा ! कण्ह लेस्सेवा, नील लेस्सेवा, काउ लेस्सेवा ___ अब तीसरे उद्देशे में पलाम्र पत्र का प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! पलास पत्र में एक जीव उत्पन्न । होता है या अनेक जीव उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! उत्पल जैसे कहना परंतु शरीर अवगाहना जघन्य है अंगुल का असंख्यात वा भाग उत्कृष्ट प्रत्येक गाउ. इस में देव उत्पन्न नहीं होते हैं. और कृष्ण, नील व कापात ऐसी तीन लेश्या के २६ भांगे कहना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह अग्यारवाई: ।
अग्यारवा शतकका तीसरा उद्देशा.
भावार्थ
4