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488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 488
संमोहयावि मरति असंमोहयावि मरंति ॥ ३६॥ तेणं भंते ! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता
कहिं गच्छंति कहिं उववजंति किं णेरइएसु उववज्जति, तिरिक्ख जोणिएसु उत्रवजंति, एवं जहा वकंतीए उव्वदृणाए वणस्सइ काइयाणं तहा भाणियव्वा ॥३७॥ अह भंते? सव्वे पाणा सव्वे भया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता उप्पल मूलत्ताए, उप्पल कंदत्ताए उप्पल णालत्ताए उप्पल पत्तत्ताए उप्पल केसरत्ताए उप्पल कण्णियत्ताए उप्पल थिभगत्ताए उववण्ण पुन्वा ? हंता गोयमा! असतिं अदुवा अणंत खुत्तो सेवं
भंते भंतेत्ति ॥ उप्पल उद्देसओ ॥ एगारससथस्स पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥११॥१॥ परते हैं और असमोहया भी मरते हैं ॥ ३६ ॥ अहो भगवन् ! वे जीवों वहां भे मरकर कहां जाते हैं कहां है उत्पन्न होते हैं ? क्या नरक में जाते हैं, तिर्यंच में जाते हैं, मनुष्य में जाते हैं, व देव में जाते हैं ? अहो गौतम ! वे जीवों नरक में नहीं जाते है परंतु तिर्यंच, मनुष्य व देवलोक में ईशान देवलोक तक जाते हैं. विशेष खुलासा पनवणा के छठे पद में से जानना ॥ ३७॥ अहो भगवन् ! सब प्राण, भूत, जीव व मत्व क्या उत्पल के मूलप ने, नालपने, पत्राने, केसरपने, कणिकापने, फलपने व बीजपने क्या पहिले उत्पन्न हुए? to हां गौतम ! वे जीवों एकवार नहीं परंतु अनंनवार उत्पन्न हवे. अहो भागवन् ! आप के वचन सत्य हैं। यह अग्यारवा शतक का पहिला उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ११ ॥ १॥ . .
भावाथे
अग्यारवा शतक का पहिला उद्देशा 4880