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________________ १४२० अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 87 तेणं भंते! जीवा किमाहारमाहारेति ? गोयमा ! दव्वओ अणंत पएसियाई दवाई एवं जहा आहारुद्देसए वणस्सइकाइयाणं आहारे तहेव जाव सव्वप्पणयाए आहार माहारेति, णवरं णियमं छाहीसं सेसं तंचेव ॥ ३३ ॥ तेसिणं भंते! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसणं दसवास सहस्साइं ॥ ३४ ॥ तेसिणं भंते ! जीवाणं कइसमुग्घाया पण्णत्ता? गोयमा ! तओ समुग्घाया पण्णत्ता, तंजहा वेयणासमुग्याए, कसायसमुग्याए, मारणंतियसमुग्घाए ॥ ३५ ॥ तेणं भंते ! जीवा मारणतिय समुग्घाएणं किं संमोहया मरंति असंमोहया मरंति ? गोयमा ! जीवों किस का आहार करते हैं ? अहो गौतम ! द्रव्य स अनंत प्रदेशात्मक द्रव्य का ऐही आहार, उद्देशा कहना. यावत् सर्व आत्म प्रदेश से आहार के पुद्गल ग्रहण करे विशेष में नियमा छ दिशी के पुद्गलों का आहार कर ॥ ३३ ॥ अहो भगवन् ! वे जीवों की स्थिति कितनी कही ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट दश हजार वर्ष की ॥ ३४ ॥ अहो भगवन् ! उन जीवों को कितनी समुद्धातों कहीं ? अहो गौतम ! वेदना, कषाय व मारणांतिक ऐसी तीन समुद्धात कहीं हैं ॥ ३५ ॥ अहो भगवन् ! मारणांतिक समुद्धात से क्या वे समोहया मरते हैं अथवा असमोहया मरते हैं ? अहो गौतम ! समोहया *प्रकाशक-राजाबहादर लालामुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* भावार्थ 1
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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