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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
कालं गइरागतिं करेजा ||२९|| सेणं भंते ! उप्पल जीवे आउजीवे एवंचेव एवं जहा पुढवी जीवे भणिते तहा जाव वाउजीवे भाणियव्वे ॥ सेणं भंते उप्पलजीवे ते वणस्सइ ते पुरवि उप्पल जीवेति केवइथं कालं सेवेज्जा केवइयं कालं गइरागतिं करेजा ? गोयमा ! भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं अनंताई भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णणं दो अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं तरुकालो एवतियं कालं सेवेजा एवइयं कालं गइरागति करेजा ॥ २० ॥ सेणं भंते ! उप्पलजीवे बेइंदियबेदिजीवे पुरवि उप्पलजीवति केवइयं कालं सेवेजा, केवइयं कालं गइरादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्यात काल तक गमनागमन करे || २१ || अहो भगवन् ! उत्पल के जीव अप्काय में जाकर पुनः उत्पल में उत्पन्न होवे तो कितने काल में उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! {जैसे पृथ्वीकाय जीव का कहा वैसे ही कहना वेसेही तेउ वायु काय का भी कहना अहो भगवन् ! उत्पलके { जीव वनस्पति में उत्पन्न होकर पुनः उत्पल में कितने काल से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! भवादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट अनंत भव कालादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ठ अनंत काल तक सेवे और अनंत काल तक गमनागमन करे || ३० ॥ अहो भगवन् ! उत्पल के जीव बेइन्द्रिय में उत्पन्न होकर पुन:
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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