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________________ 8 42 पण्णत्ति (भगत मूत्र णो सण्णी असण्णीवा असणिण्णोवा ॥ २६ ॥ तेणं भंते ! जीवा किं सइंदिया अणिदिया? गोयमा! णो अणिंदिया, सइंदिएवा सइंदियावा ॥२७॥ तेणं भंते! उप्पल जीवे तिकालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं असंखजं कालं ॥ २८ ॥ सेणं भंते ! उप्पल जीवे पुढवी जीवे पुणरवि उप्पल जीवे तिकालओ केवतियं कालं सेवेज्जा केवइयं कालं गतिरागतिं करेजा ? गोयमा ! भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं असंखेजाइं भवग्गहणाई कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं असंखेनं कालं एवतियं कालं सेवेज्जा एवतियं वचन के दो भांगे होते हैं ॥ २६ ॥ अहो भगवन् ! क्या वे सइन्द्रिय हैं या अनिद्रिय है ! अहो गौतम ! अनिन्द्रिय नहीं है परंतु सइन्द्रिय आश्री एक वचन व वहुवचन के दो भांगे होते हैं ॥ २७ ॥ अहो भगवन्! उत्पल के जीव कितने काल तक रहते हैं ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहे ॥ २८ ॥ अहो भगवन् ! वे जीवों पृथ्वी कायपने उत्पन्न होकर पुनः उत्पल जीवपने कितने काल में उत्पन्न होवे और कितने काल तक गति आगति करे ? अहो गौतम ! भव ग्रहण आश्री जघन्य दो भव (एक पृथ्वी काया का दूमरा उत्सल का) उत्कृष्ट असंख्यात भव तक गमनागमन करे. काला अग्यारवा शतक का पहिला उद्दशा भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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