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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी g
तेणं भंते ! जीवा किं कोहकसाई, माणकसाई, मायाकसाई, लोभकसाई ? गोयमा ! कोह कसाईवा असीतिभंगा ॥ २३ ॥ तेणं भंते ! जीवा किं इत्थीवेदगा, पुरिस. वेदगा, णपुंसगवेदगा? गोयमा ! णो इत्थीवेदगा, जो पुरिसवेदगा, णपुसगवेदगेवा णपुंसगवेदगावा ॥ २४ ॥ तेणं भंते जीवा किं इत्थीवेद बंधगा, पुरिसवेद बंधगा, णपुंसगवेद बंधगा ? गोयमा! इत्थीवेद बंधएवा, पुरिसवेद बंधएवा, णपुंसगवेद
धंधएवा छब्बीसं भंगा ॥ २५ ॥ तेणं भंते ! जीवा किं सण्णी असण्णी ? गोयमा ! के ८० भाग पाने हैं. ॥ २२ ॥ अहो भगवन् ! क्या वे जीवों क्रोध कषायी, मान कषायी, माग कषायी विलोम कषायी है. ? अहो गोतम ! इन चारों कषायों के ८० भांगे होते हैं. ॥ २३ ॥ अहो भगवन् ! *क्या वे स्त्री वेदी, पुरुष वेदी व नपुंसक. वंदी हैं ? अहो गौतम ! पुरुष वेदी नहीं है. स्त्री वेदी नहीं हैं.
परंतु नपुंसक वेदी हैं. उन कं एक वचन व द्विवचन ऐने दो भांगे होते हैं ॥ २४ ॥ अहो भगान् ! क्या वे स्त्री वेद बंधवाले हैं। पुरुष वेद बंधवाले हैं या नपुंसक वेद बंधवाले हैं. ? अहो गौतम ! पुरुष वेद बंध वाले, स्त्री वेद बंधवाले व नपुंसक वेद बंधवाले हैं. उन के ऐने २६ भांगे होते हैं. ॥ २५ ॥ भो भगवन् } क्या ये संज्ञो हैं या असंज्ञी है ? अहो गोतम ! वे संज्ञो नहीं हैं परन्तु असंज्ञी हैं. इसके एक वचन बहु
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ