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12. अट्ठफासा पण्णता, तेपुण अप्पणा अवण्णा अगंधा अरसा अफासा पण्णत्ता ॥१६॥
तेणं भंते! जीवा किं उस्सासा निस्सासा णो उस्सासणिस्सासा? गोयमा ! उस्सा. सएवा णिस्सासएवा णो उस्स्गस णिस्सासएवा, उस्सासगावा णिस्सासगावा णो उस्सास णिस्सासगावा अहवा उस्सासएय णिस्सासएय ४ ॥ अहवा उस्सासएय णो उस्सास णिस्सासएय ४ । अहवा णिस्सासएय णो उस्सास णिस्सासएय ४॥ अहवा उस्सासएय णिस्सासएय णो उस्सास णिस्सासएय अट्ट भंगा ॥ एए छब्बीसं भंगा भवति ॥ १७ ॥ तेणं भंते! जीवा किं आहारगा अणाहारगा? गोयमा ! णो
अणाहारगा आहारएवा, अणाहारएवा अट्ट भंगा ॥ १८ ॥ तेणं भंते जीवा किं विरया परंतु आत्म स्वरूप से वर्ण रहित, गंध रहित, रस रहित, व स्पर्श रहित प्ररूपे हैं ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! क्या वे उश्वास, नीश्वासवाले हैं या उश्वास नीश्वास वाले नहीं है ? अहो गौतम ! एक श्वासवाला, एक 'उश्वासवाला, और एक उश्वास नीश्वासवाला नहीं यह तीन एक वचन और तीन अनेक वचन यों एक
संयोगी छ भांगे द्विसंयोगी १२ भांगे और तीन संयोगी आठ भांगे यों सब मीलकर २६ भांगे होते हैं *॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! क्या वे जीवों आहारक हैं या अनाहारक हैं ? अहो गौतम ! अनाहारक नहीं
बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 82
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
अनवादका