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भावार्थ
॥ १२ ॥ तेणं भंते ! जीवा किं नाभी अण्णाणी ? गोयया ! णो णाणी अण्णाणी, अण्णाणिणोवा ॥ १३ ॥ तेणं भंते जीवा किं मणजोगी, वइजोगी, काय जोगी ? गोयमा ! णो मणजोगी, णो वइजोगी, कायजोगीवा, कायजोगिणोवा ॥ १४ ॥ तेणं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ? गोयमा ! सागारोवउत्तेवा अणगारोवउत्तेवा अट्ठ भंगा ॥ १५ ॥ तेणं भंते! जीवाणं सररिगा कइ - वण्णा कइगंघा कइरसा, कइफासा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचवण्णा दुगंधा पंचरसा {सम मिथ्या दृष्टि नहीं है उस में भी मिथ्या दृष्टि के एक वचन बहुवचन आश्री दो भांगे जानना ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! क्या वे जीवों ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? अहां गौतम ! ज्ञानी नहीं हैं परंतु अज्ञानी हैं। {उन में एक वचन द्विवचन आश्री अज्ञानी के दो भेद होते हैं ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! क्या वे मनयोगी वचन योगी व काय योगी हैं ? अहो गौतम ! मन योगी व वचन योगी नहीं हैं परंतु काय योगी है. उस के एक वचन द्विवचन ऐने दो भांगे होते हैं । १४ || अहो भगवन् ! क्या वे जीव साकारोपयुक्त है या अनाकारोपयुक्त है ? अहो गौतम ! साकारोपयुक्त व अनाकारोपयुक्त है ऐसे ही उस के भाठ भांगे जानना || १५ || अहो भगवन् ! उन जीवों के शरीर कितने वर्णवाले, कितनी गंधवाले, कितने रसवाले व कितने स्पर्शत्राले प्ररूपे हैं ? अहो गौतम ! पांच वर्ण, दो गंध पांच रस व आठ स्पर्शवाले हैं
** पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
4090403 अग्यारवा शतकका पहिला उद्देशा 43+
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