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सूत्र
भावार्थ
403 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
रंगा अणुदीरगा ? गोयमा !
यस ॥
अणुदीरगा उदीरएवा, उदीरगावा एवं जाव अंतराइवरं वेणिज्जाउएस अट्ठभंगा ॥ १० ॥ तेणं भंते! जीवा किं कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेस्सा ? गोयमा ! कण्हलस्सेवा, नीललेस्सेवा, काउले:स्सेवा, तेउलेस्सेवा; कण्हलेस्सावा, नीललेस्सावा, काउलेस्सावा, तेउलेस्सावा, अहवा कण्हलरसेय, नीललेस्सेय एवं एएदुया संयोग तियासंजोग चउक्क संजोगेणय; असीि भंगा भवति ॥ ११ ॥ णं भंते! जीवा किं सम्माद्दट्ठी, मिच्छाद्दिट्ठी, सम्ममिच्छा हिट्ठी ? गोयमा ! णां सम्माद्दट्ठी णां सम्मामिच्छाद्दिट्ठी, मिच्छादिट्ठीवा मिच्छादिट्टिणेोवा रणा होती है. पर अनुदीरणा नहीं होती है. और उदीरणा आश्री एक वचन व द्विवचन के दो भांगे कहना. ऐसे ही अंतराय कर्म का कहना. और वेदनीय में आठ भांगे कहना ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! क्या वे जीव कृष्ण लेश्यावाले, नील लेश्यावाले, कापोत लेश्या वाले व तेजोलेश्यावाले हैं ? अहो गौतम ! कृष्ण लेश्यावाला, नील लेश्यावाला, कापोत लेश्यावाला, व तेजो लेश्यावाला अथवा कृष्णलेश्यावाले, नील लश्यावाले, कापोत लेश्यावाले, व तेजोलेश्यावाले यों एक वचन, अनेक वचन के असंयोगी आठ भांगे हुवे. ऐसे ही एक कृष्ण लेश्यात्राला एक नील लेश्यावाला ऐसे द्विसंयोगी २४ भांगे, तीन संयोगी ३२ भांगे चतुष्क संयोगी १६ यों सत्र मीलकर ८० भांगे होते हैं ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! दृष्टी हैं, मिथ्या दृष्टी हैं या सम मिथ्या दृष्टि हैं ? अहो गौतम !
सम द्दष्टि नहीं है,
क्या जीव सममिथ्यादष्टी हैं व
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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