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शब्दार्थ
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॥ एकादशशतकम् ॥ उ० उत्पल ता० सालूक ५० पलास कुं० कुंभी ना० नाडीक ५० पद्म क० कर्णिका न० नलीन सि. शिव लो० लोक का काल अ० आलभिका द० दश दो दो ए. अग्यारवे में ते. उस काल ते. उस* समय में रा० राजगृह जा० यावत् ए० ऐमा व० बोले उ० उत्पल भं भगवन् ए० एक ५० पत्र में किं.
उप्पल सालु पलासे, कुंभी नालीय; पउम कण्णीय, नलिण सिवलोग काला
लभीय दसदोय एकारे तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी ।
र दशवे शतक के अंत में अंतरद्वीपों का वर्णन कहा. उन अंतरद्वीपों में वनस्पति की अधिकता है इस भावार्थ
लिये इस अग्यारवे शतक में वनस्पति आश्री प्रश्नोत्तर कहते हैं. इस शतक में बारह उद्देशे कहे हैं. उन के नाम १. पहिले उद्देशे में उत्पल की व्याख्या २दूमरे में उत्पल के कंद का निरूपन, ३ पलासका ४ कुंभी वनस्पति का नाली के आकार की वनस्पतिका, ६ पद्म कमलका ७ कर्णिका का ८ नलिनी काई ९ शिवराजर्षि का १० लोक आधिकार ११ काल अधिकार १२ आलभिका का यह अग्यारवे शतक के
बारह उद्देशे कहे हैं प्रथम उत्पल कमल नामक उद्देशे के ३२ द्वार कहे हैं. १ उत्पन्न द्वार २ परि-१०० Doमाण ३ अवहिरीया ४ ऊंचता ५ बंध ६ वेदना ७ उदय ८ उदीरणा ९ लेश्या १० दृष्टि ११ ज्ञान 10११२ योग १३ उपयोग १४ वर्णादि १५ उश्वास नीश्वास १६ आहार १७ व्रती १८ क्रिया १९ बंध ।
पंचमांगविवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
2 अग्यारवा शतकका पहिला उद्देशा *34800