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शब्दार्थ *ज जैसे जी जीवाभिगम में त० तैसे नि० निर्विशेष जा. यावत् सु० शुद्धदंतद्वीप ए. ये अ० अट्ठा
वीस उ० उद्देशा भा० कहना से वह ए. ऐसे भं० भगवन् जा० यावत् वि० विचरते हैं ॥ १०॥७-३४॥
जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव सुद्धदंत दीवोत्ति ॥ एए अट्ठावीसं उद्देसगा ___ भाणियव्वा ॥ सेवं भंते भंतेत्ति जाव विहरइ ॥ दसम सयस्सय चउत्तीसइमो । उद्देसो सम्मत्तो ॥ १० ॥ ३४ ॥ दसमं सयं सम्मत्तं ॥ १० ॥ कह देना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यों कहकर तप संयम से आत्मा को भावते हुवे श्री गौतम स्वामी विचरने लगे. यह दशवा शतक का सातवा उद्देशा से चौतीसवा उद्देशा संपूर्ण हुवा.. ॥ १० ॥ ७-३४ ॥ यह दशवा शतक समाप्त हुवा ॥ १०॥
42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी +
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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