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शब्दार्थ ||
सूत्रे
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
का अ० अलंकार अ० अर्चनिक त० तैसे जा० यावत् आ० आत्मरक्षक देव दो दोसागरोपम ठि स्थिति स० शक्र भं० भगवन् दे० देवेन्द्र दे० देव राजा के म० पहा सुखी गो० गौतम म० महर्दिक जा० यावत् म०
कितना म० महर्द्धिक ज० यावत् के० कितना महासुखी त तहां ब० बत्तीस विमान अलंकार अच्चणिया तहेव || जावं आयरक्खदेवन्ति दोसागरोवमाई ठिई ॥ सक्केणं भंते ? देविंदे देयराया के महिठ्ठीए जाव के महेसक्खे ? गोयमा ! महिठ्ठीए जात्र महेसक्खे सेणं तत्थ बत्तीसार विमाणावास सयसहस्साणं जाव विहरइ || महिढीए
मुल्य वाले व कम वजन वाले वस्त्राभूषणों से शरीर अलंकृत किया. वहांतक सत्र अधिकार कहना जिन प्रतिवा की अर्चना की फीर सौधर्म सभा में आये शक सिंहासन पर पूर्वाभिमुखने बैठे ईशान कौन में चौरासी हजार सामानिक देव बैठे पूर्व में अग्र महिषियों अग्नि कौन में आभ्यंतर परिषदा के बारह हजार देव दक्षिण में मध्यम परिषदा के चौदह हजार देव, नैऋत्य कौन में बाहिर की परिषदा के सोलह हजार देव पश्चिय में मात अनिक के अधिपति और शक्रेन्द्र की चारों दिशा में चौरासी हजार सामानिक देव व चौरासी हजार २ आत्म रक्षक देव बैठे, शकेन्द्र की दो सागरोपम की स्थिति कही है अहो भगवन् शकेन्द्र कैमी ऋद्धिवाले होते है ? अहो गौतम ! शक्र देवेन्द्र बहुत ऋद्धिवंत, बहुत द्युतिवंत, महा भाग्यवंत महा यशवंत, महा बलवंत, महा एश्वर्यवंत है. बत्तीस लाख विमान के मालक है. चौरासी हजार नामा
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* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाय जालज्याप्रसवदज
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