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भावार्थ
९०९ अनुवादक - बालब्रहचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
चत्तारि अग्गमहिसीओ १०० भुयगा, भुयगवई, महाकच्छा, फुडा तत्थणं सेसं तंचेव ॥ एवं महाकालस्सवि ॥ १८ ॥ गीयरइस्सणं भंते ! पुच्छा ? अजो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ प० तं सुघोसा, विमला, सुरसुरा, सरिस्सई, ॥ तत्थणं सेसं तंचेव ॥ एवं गीयजसस्सवि सव्वेसिं एएसिं जहा कालस्स णवरं सरिसनामगाओ, रायहाणीओ, सीहासणाणिय सेसं तंत्र ॥ १९ ॥ चंदरसणं भंते! जोइसिंदस्स जोइरिणो पुच्छा ? अजो! चत्तारि अग्गमहिसीओ प० तं ० चंदप्पभा, जोइसिणाभा, अच्चिमाली पभंकरा ॥ एवं जहा जीवाभिगमे जोइसिय उद्देसए, तहेव सूरस्सवि सूरप्पभा, ( कहना. ऐसे ही महा पुरुष का जानना || १७ || अतिकाय को चार अग्रमहिषियों कहीं. भुजगा, भुजगावती, महा कच्छा व स्फुटा शेष सब अधिकार पूर्वोक्त जैसे ऐसे ही महा काय का जानना ॥ १८ ॥ गीतरति को चार अग्रमहिषियों सुघोषा विमला, सुस्वरा व सरस्वती शेष सब पूर्वोक्त जैसे कहना. ऐसे ही | गीतयशका कहना. सब का अधिकार काल जैसे कहना. मात्र इन्द्र के नाम जैसे राज्यधानी व सिंहासन { कहना ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! चंद्र नामक ज्योतिषीन्द्र को कितनी अग्रमहिषियों कहीं ? अहो आर्यो ! (चार अग्रपदिषियों कही जिन के नाम चंद्रप्रभा, ज्योतिषीप्रभा, अर्चिमाली व प्रभंकरा. ऐसे जैसे जीवाभिगम में ज्योतिषी उद्देशा कहा वैसे कहना. वैसे ही सूर्य का कहना परंतु इन की अग्रमहिषियों के नाम
*प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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