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भंते ! रक्खासदस्स पुच्छा ? अजो ! चत्तारि अग्गमाहसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा पउमा, पउमावई, कणगा, रयणप्पभा, तत्थणं एगमेगा देवी सेसं जहा कालस्स ॥ एवं महाभीमस्सवि ॥ १५ ॥ किण्णरस्सणं भंते ! पुच्छा ? अजो ! चत्तारि अग्ग महिसीओ, प० तंजहा वडिंसा, केतुमई, रइसेणा, रइप्पिया ॥ तत्थणं सेसं तंचेव ॥ एवं किंपुरिसस्सवि ॥ १६ ॥ सुप्पुरिसस्सणं पुच्छा ? अजो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा रोहिणी. णवमिया, हिरी, पुष्फबई ॥ तत्थणं एगमेगा देवी
सेसं तंचेव ॥ एवं महापुरिसस्सवि ॥ १७ ॥ अइकायस्सणं पुच्छा ? अजो ! भावार्थबहुपुत्रिका, उत्तमा व तारका. इन का सब अधिकार कालेन्द्र जैसे कहना. ऐसे ही मणिभद्र का जानना
॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! भीम नामक राक्षतेन्द्र को कितनी अग्रमहिषियों कहीं? अहो आर्यों ! चार अग्राहिषियों कहीं. १ पद्मा २ पद्मावती ३ कनका व ४ रत्नप्रभा. इन का अधिकार काल जैसे कहना। ऐने ही महाभाम का जानना ॥ १५ ॥ किन्नर को चार अग्रमहिषियों कहीं जिन के नाम. अवतंसा, केतुमती, रतिसेना और रतिप्रिया. शेष सब अधिकार पूर्वोक्त जैसे कहना ऐसे ही किंपुरुष का जानना ॥ १६ ॥ सत्पुरुष को चार अग्रमहिषियों कहीं रोहिणी, नवमिका ही व पुष्पवती शेष आधिकार पूर्वोक्त जैसे
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र *884
Pob दशा शतक का पांचवा उद्देशा 480
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