SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1527
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४१७ भंते ! रक्खासदस्स पुच्छा ? अजो ! चत्तारि अग्गमाहसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा पउमा, पउमावई, कणगा, रयणप्पभा, तत्थणं एगमेगा देवी सेसं जहा कालस्स ॥ एवं महाभीमस्सवि ॥ १५ ॥ किण्णरस्सणं भंते ! पुच्छा ? अजो ! चत्तारि अग्ग महिसीओ, प० तंजहा वडिंसा, केतुमई, रइसेणा, रइप्पिया ॥ तत्थणं सेसं तंचेव ॥ एवं किंपुरिसस्सवि ॥ १६ ॥ सुप्पुरिसस्सणं पुच्छा ? अजो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा रोहिणी. णवमिया, हिरी, पुष्फबई ॥ तत्थणं एगमेगा देवी सेसं तंचेव ॥ एवं महापुरिसस्सवि ॥ १७ ॥ अइकायस्सणं पुच्छा ? अजो ! भावार्थबहुपुत्रिका, उत्तमा व तारका. इन का सब अधिकार कालेन्द्र जैसे कहना. ऐसे ही मणिभद्र का जानना ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! भीम नामक राक्षतेन्द्र को कितनी अग्रमहिषियों कहीं? अहो आर्यों ! चार अग्राहिषियों कहीं. १ पद्मा २ पद्मावती ३ कनका व ४ रत्नप्रभा. इन का अधिकार काल जैसे कहना। ऐने ही महाभाम का जानना ॥ १५ ॥ किन्नर को चार अग्रमहिषियों कहीं जिन के नाम. अवतंसा, केतुमती, रतिसेना और रतिप्रिया. शेष सब अधिकार पूर्वोक्त जैसे कहना ऐसे ही किंपुरुष का जानना ॥ १६ ॥ सत्पुरुष को चार अग्रमहिषियों कहीं रोहिणी, नवमिका ही व पुष्पवती शेष आधिकार पूर्वोक्त जैसे पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र *884 Pob दशा शतक का पांचवा उद्देशा 480 ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy