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सूत्र /
चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा- कमला, कमलप्पभा, उप्पला, सुदंसा ॥ तत्थणं एगमेगाए देवीए एगमेगं देविसहस्सं सेसं जहा चमर लोगपालाणं परिवारो तहेव, णवरं कालाए रायहाणीए, कालंसि सीहासणंसि सेसं तंचेव॥ एवं महाकालस्सवि
॥ १२ ॥ सुरुवस्संणं भंते! भूतिदस्स भूयरण्णो पुच्छा,अजो! चत्तारि अग्गमहिसीओ, पतंजहा रूयबई, बहुरूवा, सुरूवा, सुभगा॥तत्थणं एगमेगा सेसं जहा कालस्स ॥ एवं पडिरूवस्संवि ॥ १३ ॥ पुण्णभदस्सणं भंते ! जखिदस्स पुच्छा ? अजो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा पुण्णा, बहुपुत्तिया, उत्तमा, तारया ॥
तत्थणं एगमेगाए सेसं जहा कालस्स ॥ एवं माणिभद्दस्सवि ॥ १४ ॥ भीमस्सणं भावार्थ * कमला, कमलप्रमा, उत्पला व सुदर्शना. एक २ देवी का एक २ हजार का परिवार है वगैरह चमरेन्द्र के.
लोकपाल जैसे कहना. विशेषता में काल राज्यधानी व काल सिंहासन जानना. जैसे कालका कहा वैसे ही महा काल का जानना ॥ १२ ॥ सुरूप नामक भूतानेन्द्र को चार अग्रमहिषियों कहीं जिन के नाम. रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा व सुभगा. उन का आधिकार काल जैसे कहना. जैसे सुरूप का कहा वैसे ही प्रतिरूप का जानना ॥ १३ ॥ पूर्ण भद्र नामक यक्षेन्द्र का चार अग्रमहिषियों कहीं. जिन के नाम. पूर्णा,
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋविना
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहावजी ज्वालाप्रसादजी *
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