________________
48:
१४९५
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
सुभद्दा, सुजाया, सुमणा ॥ तत्थणं एगमेगाए देवीए अवसेसं जहा चमर लोगपालाणं, एवं सेसाणवि, तिण्हिवि लोगपालाणं, तहा दाहिणिला इंदा, तेसिं जहा धरणस्स ॥ लोगणलाणवि तेसिं जहा धरणलोगपालाणं ॥ उत्तरिंदाणं जहा भूयाणंदस्स, लोगपालाणवि, तेसिं जहा भयाणंदस्स लोगपालाणं णवरं इंदाणं सव्वेसिं रायहाणीओ सीहासणाणिय सरिसणामगाणि, परिवारो जहा मोओदेसए ॥ लोगपालाणं सव्वेसिं रायहाणीओ सीहासणाणिय, सरिसणामगाणि, परिवारो जहा चमरलोगपालाणं ॥११॥ .
कालस्सणं भंते ! पिसायइंदस्स पिसायरण्णो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ? अजो! पाल का भी वैसे ही कहना. जितने दक्षिण दिशा के इन्द्र हैं उन का अधिकार धरणेन्द्र जैसे कहना, और दक्षिण दिशा के लोकपाल का अधिकार धरणेन्द्र के लोकपाल के अधिकार जैसे कहना. उत्तर दिशा के इन्द्र का अधिकार भूतानेन्द्र जैसे कहना. और उन के लोकपालों का अधिकार भूतानेन्द्र के लोकपालों जैसे कहना विशेष इतना कि राज्यधानीयों व सिंहासनों के नाम इन्द्र जैसे कहना और परिवार तीसरे शतक में जैसे मोया उद्देशे में कहा वैसे कहना. लोकपाल की राज्यधानीयों व सिंहासनों के नाम लोकपाल जैसे जानना. और परिवार चमरेन्द्र के लोकपाल जैसे जानना ॥ ११॥ अहो भगवन् !* काल नामक पिशाचेन्द्र को कितनी अग्रमहिषियों कहीं ? अहो आर्यो ! चार अग्रमहिषियों कहीं.१ ।
दशवा शतकका पांचवा उद्देशा
8