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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एवं वेसमणस्स वि, नवरं वेसमणाए रायहाणीए सेसं तं चेत्र जात्र मेहुणवत्तियं ॥ ४ ॥ बलिस्सणं भंते ! वइरोयदिस्स पुच्छा, अज्जो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहा - सुभा, णिसुंभा, रंभा, निरंभा, मदणा ॥ तत्थणं एगमेगाए देवीए अट्ठट्ठ सेसं जहा चमरस्स; णवरं बलिचंचाए रायहाणीए परिवारो जहा मोयोद्देसए, सेसं तंचेव जाव मेहुणवत्तियं ॥ ५ ॥ बलिस्सणं भंते ! वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारण्णो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ? अजो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ प० तंजहा- मीणगा, सुभद्दा, विज्जुया, {इन में यम, वरुण व वैश्रमण राज्यधानी कहना ॥ ४ ॥ अहो भगवन ! बली नामक वैरोचनेन्द्र को कितनी अग्रमहिषियों कहीं ? अहो आर्यो ! बली नामक वैरोचनेन्द्र को पांच अग्रमहिषियों कही जिन के नाम. शुभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा व मदना. इन में एक २ को आठ २ हजार देवियों का परिवार, आठ २ {हजार वैक्रय करे वगैरह चमरेन्द्र जैसे कहना. यहां बलि चंचा राज्यधानी की सुधर्मा सभा में बलि चंचा सिंहासन कहना. परिवार जैसे तीसरे शतक में मोया उद्देशे में कहा वैसे कहना. यावत् भोग भोगवने को समर्थ नहीं है ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! बलि नामक वैरोचनेन्द्र के सोम महाराजा को कितनी अग्रमहिषियों कडी ? अहो आर्यो ! बली नामक वैरोचनेन्द्र के सोम महाराजा को चार अग्रमहिषियों कहीं. जिन के [नाम. मेनका, सुभद्रा, विद्युत् और असनी. इन का सब अधिकार चमरेन्द्र के लोकपाल जैसे कहना और
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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