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488 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 188
तंजहा • कणया, कणगलया, चित्तगुत्ता, वसुंधरा, तत्थणं एगमेगाए देवीए एगमेगं देविसहस्सं परिवारो पण्णत्तो ॥ पभूणं ताओ एगमेगादेवी अण्णं एगमेगं देवि । सहस्स परियारं विउवित्तए, एवामेव सपुत्वावरणं चत्तारि देविसहस्सा, सेतं तुडिए॥ पभूणं भंते ! चमरस्स अमरिंदस्स असुर कुमाररण्णो सोमे महाराया सोमाए रायहाणीए सभाए सुहम्भाए सोमंसि सीहासणंसि तुडिएणं अवसेसं जहा चमरस्स, णवरं परियारो जहा सूरियाभस्स ; सेसं तंचेव जाव णो चेवणं मेहुणवत्तियं चमरस्टणं
भंते ! जाव रण्णो यमस्स महारण्णो कइ अग्गमहिसीओ एवं चेव ॥ णवरं है जमाए रायहाणीए सेसं जहा सोमस्स, एवं वरुणस्सवि, णवरं वरुणाए रायहाणीए का परिवार है और एक २ देवी एक हजार रूप वैक्रय कर सकती है इस तरह सब की गिन्ती करते त्रुटित संख्या होती है. अहो भगवन् ! सोम महाराजा सोमा राज्यधानी में सुधर्मा सभा में सोम सिंहासन पर बूटित रूप भोग भोगवने के लिये क्या करने को समर्थ है? अहो आर्यो! जैसे चमरेन्द्र का कहा। वैसे ही यहां जानना. विशेष में परिवार रायप्रसेणी सूत्र में सूर्याभ देवता का जैसा अधिकार है वैसा जानना. यावत् मैथुन सेवन करने को समर्थ नहीं है. ऐसे ही यम, वरुण व वैश्रमण का जानना. परंतु
3 दशवा शतक का पांचवा उद्देशा 988
भावाथे