________________
शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
असुर राजा च० चमर चंचा रा०राजधानीकी स० सभा सु० सुधर्मा च० चमर सी० सिंहासन में च० चौसठ (सा० सामानिक बा० सहस्र ता० त्रायस्त्रिशक अ० अन्य ब० बहुत अ० असुरकुमार देव देव दे० देवी से [सं० घेराये हुवे जा० यावत् भुं० भोगवते वि० विचरने को के० केवल प० परिचारणा करने को णो० { नहीं मे० मैथुन सेवनेको || ३ || सरल शब्दार्थ ॥
* प्रकाशक - राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसट्ठी सामाणिय साहस्सीहिं तायतीसाए जाव अण्णोर्हच बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिय देवीहिय सद्धिं संपरिवुडे महयाहय जाव भुंजमाणे विहरितए || केवलं परियांरिडीए णो चेवणं मेहुणवन्ति ॥ ३ ॥ चमरस्सणं भंते ! असुरिंदस्स असुर कुमाररण्णो सोमस् महारण कई अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ? अज्जो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ चौसठ हजार सामानिक देव, तेतीस त्रायात्रिंशक, यावत् अन्य बहुत असुर कुमार के देव व देवियों की साथ {परवराहुवा उस अनेक प्रकार के वादिचों के महा नाद से अनेक प्रकार के नाटक देखता हुवा विचरने को {समर्थ है. मात्र स्त्री के स्पर्श व शब्द रूप परिचारणा में समर्थ हैं परंतु मैथुन सेवन में समर्थ नहीं है ॥३॥ अहो ( भगवन् ! चमर नामक असुरेन्द्र के सोम महाराजा को कितनी अग्रमहिषियों कहीं ? अहो आर्यो ! चार अग्रमहिषियों कहीं. १ कनका, २ कनकलता, ३ चित्रगुप्ता व ४ वसुंधरा उन में एक२. देवी को एक२ हजार
१४९०