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शब्दार्थ
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49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी पाने श्रा अमोलक ऋपिनी
जो नहीं इ० यहअर्थ स० योग्य से वह के० कैसे भ० भगवन् ए. ऐसा बु· कहा जाता है जो * नहीं प० समर्थ च० चमर अ० असुरेन्द्र अ० अमुरराजा च० चमरचेचा रा. राजधानी जा. यावत् । वि० विचरनेको अ• आर्य च • चपर अ० अमुरेन्द्र अ० असुरराजा च० चमरचंचा रा० राजधांनी समभा स सधर्मा में मा०माणवक चे० चैत्य खसंभ कवनय गोगोला व वर्तलाकार ब० बहत जि.
णो इणटे समढे ॥ से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ णो पभू चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचचाए रायहाणीए जाव विहरित्तए ? अजो चमरस्सणं असुरिंदस्स असुर १ कुमाररण्णो चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चइए खंभे वइरामए
गोलवट समुग्गएसु बहूओ जिणसकहाओ सण्णिक्खित्ताओ चिटुंति ॥... ॥ जाओणं परिवारवाली देवियों आठ २ हजार रूप वैक्रेय कर सकते हैं. इन सब की एक त्रुटित नामक संख्या होती है ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! चमर अपुरेन्द्र चमर चंचा राज्यधानी की सुधर्मा सभा में चमर सिंहासनपे त्रुटित वर्गवाली देवियों की साथ दीव्य भोग भोगता दुवा विचरने को क्या समर्थ है ? अहो आर्यों !! यह अर्थ समर्थ नहीं है. अहो भगवन् ! किस कारन से यह अर्थ योग्य नहीं है ? अहो आर्यों ! चमरेन्द्र की चमर चंचा गज्यधानी की सुधर्मा सभा में माणवक चैत्यमें वज्ररत्नमय मणिस्थंभ में मोल वर्तुलाकार डब्बे में जिन दाढों प्रमुख रस्त्री हैं. वे असुरकुमार राजा को व उस के अन्य बहुत देवी देवताओं को अर्चनीय
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी *
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