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शब्दार्थ मे० मेधा त० तहां ए०एकेक दे देवीको अ० आठ आठ दे० देवीमहल प० परीवार प० प्ररूपा प० समर्थ ।
ता० उन ए० एफेंक दे देवीकी अ० अन्य अ० आठ दे० देवीमहल प० परिवार को विः विकुर्वणाकर नको ए ऐ ही स० पूर्वापरसे च० चाली सः सहस्र तु० त्रुटित ॥ २॥ १० समर्थ भं• भगवन् । च० घमर अ० असुरेन्द्र अ० असुरराजा च० चमरचंचा रा० राजधानी स. सभा सु० मुधर्मा च० चमर ३० सिं० सिंहासनपे तु. त्रुटिन स• साथ दि० दीव्य भी० भोगोपभोग भा० भोगता वि० विचरने को
रयणी, विजू मेहा । तत्थणं एग मेगाए देवीए अट्ठा देवि सहस्स परिवारो पण्णत्तो ॥ पभू णं ताओ एगमेगाए देवीए अण्णाइं अट्ठ देवी सहस्साइं परियार विउवित्तए एवामेव सपुव्वावरेणं चत्तालीसं देवी सहस्सा, सेत्तं तुडिए ॥ २ ॥ पभूणं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए
चमरंसि सीहासणंसि तुडिएणं साहि दिव्याई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? भावार्थ कर पर्युपासना करते हुवे ऐसा बोल कि हो भगवन् ! चयर नामक असुरेन्द्र असुरराजा को कितनी
अंग्रमहिषीयों कहीं ? अहो आर्यों ! चमरेन्द्र को पांच अग्रमहिषियों कहीं. १ काली २ रात्रि ३ रजनी 3 १४ विद्युत् व ५ मेघा. उन में एक २ अग्रमहिषियों को आठ २ हजार देवियों का परिवार हैं और एक
१२ देवी आठ २ हजार रूप भोग भोगने के लिये बैक्रेय करने को समर्थ हैं. इसी तरह चालीस हजार
4880 पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) मूत्र.89803
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दशा शतकका पांचवा उद्देशा